मैंने इंतजार चुना है,
शाम के ढल जाने का,
वक्त के बदल जाने का खुद के संभल जाने का।
राहों के मुड़ जाने का,
मैंने इंतजार चुना है।
मुश्किल होगा ये जाना है,
लो राह, पर दिल हार तो नही माना है,
थक कर जो तुम चुन
वो राह कहा चुनी मन से जायेगी।
और जो मन ही ना स्वीकार करे,
फिर उसे ज़िंदगी कैसे अपनायेगी।
कोई चले जो मन से साथ मेरे,
मैं साथ उसी का मागूंगी।
तब तक मैने खुद का साथ चुना है।
मैंने इंतजार चुना है।
जो छोड़ दिया आज साथ सपनों का,
कल आंखे सपना देखना भूल जायेगी,
जो नही चल पाए हम पथरीले रास्तों पर,
कैसे ज़िंदगी बिना चोट दिए कुछ सिखाएगी,
मैंने खुशी से उसका हर एक दर्द चुना है।
मैंने इंतजार चुना है।
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