पता है Recently i realised
की मुझे दिल में बसाना आसान नहीं है
बात-बात पे चिढ़ जाती हूं मैं
दिल लगा लूं एक बार तो फिर ज़िद पे अड़ जाती हूं मैं
आंसू यूं तो छुपा लेतीं हूं
मगर कोई एक बार पुछले कि क्या हुआ
तो बस
आँखों से नदिया बहा देती हूँ मैं
गुस्सा बहुत आता है
ख़ुश उससे भी ज़्यादा होती हूँ
जब ज्यादा मुश्किलें आ जाए तो
मैं सब छोड़ के सिर्फ सोती हूं
शायद किसीने सही कहा है
की दिलमें बसना चाहती हूँ सबके
इससे ज्यादा मेरा कोई अरमान नहीं है
मगर हाँ शायद मुझे दिल में बसाना
इतना भी आसान नहीं है.. .. 😊