विदाई से ही खत्म हो जाता हैं रिश्ता औरतों का फिर उसके बाद आंखों के आंसू पहचानने वाला कोई
नहीं होता...
रोता हैं दिल जब भी औरतों का
ससुराल में चुप कराने वाला उन्हें कोई नहीं होता.....
सारे रिश्ते भूल के वो सबको अपनाती हैं। प्यार से तसल्ली देने वाला उन्हें कोई नहीं होता.....
हर बात पर ताने वो हर बार सह जाती हैं ससुराल में उनकी तरफ बोलने वाला कोई नहीं होता.....
गैर होके भी वो अपनापन जताती रहती हैं क्या खबर थी यहां अपना हमसफर भी अपना नहीं होगा....
यही दास्तां हैं औरतों की...