मिलवाते नहीं है अपने अंधेरों से हम को ये उजाले भी देखो कैसे दगा करते हैं ....
कभी करते हैं बेहद मोहोब्बत खुद ही से हम कभी खुद ही के खयालों से डरा करते हैं ....
कुछ ज़ख्म इस कदर रहते हैं साथ हमारे वो ज़ख्म खुद ही अपने मलहम लगा करते हैं
शहर के वो सब रास्ते जो घर को जाया करते हैं .... वो रास्ते भी हमको घर ही लगा करते हैं.
तुम्हारी खामियों में भी ढूंढ लेते हैं खूबियां वो लोग जो तुमसे बेपनाह इश्क़ किया करते हैं ....
मिलवाते नहीं है अपने अंधेरों से हम को ....
ये उजाले भी देखो कैसे दगा करते हैं।