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Wednesday, December 21, 2022
चादर
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कल से अपना रिश्ता नाता तोड़ के बैठी हूँ पलकों में बरसों की बूँदें जोड़ के बैठी हूँ। साँझ सवेरे करती थी सिंगार कभी सच दिखलाता नाजुक शीशा तोड़...
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